Tuesday, August 26, 2008

बदनसीब

ये मांगने वाले
सड़क पर
चिथडों में लिपटे
भिखारी कहते हैं हम उन्हें
और उनके वो अनाथ बच्चे
चिलचिलाती धूप में नंगे पांव
कडकडाती सर्दी में नंगे बदन
दिन भर
रात भर
चाँद जैसी
आधी कच्ची
आधी जली हुई
रोटी के
चाँद टुकडों के मोहताज होकर
अपने जैसे ही कुछ लोगों के आगे
फैलाते हैं हाथ
और मंगाते हैं चाँद दाने
कभी भगवान्
कभी नसीब के नाम पर
पल पल जीते हुए
पल पल मरते हुए
मगर उनकी आत्मा
जो अब तक मरी नही
वो नही मांगती
वो दाने
वो तुकडे
वो मांगती है मुक्ति
उन आंसुओं से
जो उसकी अभागी माँ ने
उसके पैदा होने पर
उसकी किस्मत
पर बहाए थे
वो मांगती है बदलाव
बदलाव
जो किसी सेठ की
तिजोरी में कैद है

1 comment:

  1. jingi ka najadik se dekha najara........sathi parbhakar ko lale-lale-lal salam

    ReplyDelete